जिंदगी के एक सफ़र में इतने सारे सफ़र होते हैं।....................121




 जिंदगी के एक सफ़र में इतने सारे सफ़र होते हैं।
कभी अकेले हम सफ़र में!कभी कई सारे हमसफ़र होते है

 

तुम साथ होते तो पत्थर काट कर बना लेते हम सफ़र
तुम्हारे बिन कितने लम्बे हर लम्हे के सफर होते हैं

हर रुकती गड़ी से मुझको तू उतरती नजर आती है
जब तू खुद तेरे साथ होती है तो कैसे तेरे सफ़ऱ होते हैं

मेरे जैसे भी बैठे है यहाँ जो ये सब बस देखते रहते है
कुछ बहुत खुश लोग मिलते है जिनके अच्छे सफ़ऱ होते हैं

क्यों ये मैं खुद से मचल रहा हूँ...................120




 क्यों ये मैं खुद से मचल रहा हूँ
बड़ी पाबन्दियों में चल रहा हूँ

 

मुझे देखो मैं हो गया खुदा तो नही
मैं भी एक उम्र से पत्थर रहा हूँ

 

जो नाम मोहब्बत जो सब करते हैं
मैं उसी नाम मोहब्बत में जी रहा हूँ

 

काम रस्ते में आ जाते हैं बदल की तरह
मैं खुद अपने ही लिए बादल रहा हूँ

धर्म क्या है.............118 some #think about #Region





 एक परम्परा जो द्वेष युक्त

बस धर्म नाम की क्लेश युक्त

 

ले चले दूर से दूर दूर तक
निज क्रूरी ह्रदया भाव बस

अगुणित मन की द्रगढ़ कहानी
रच धर्म बने कुछ धर्म पुजारी

कुछ बोल रहे जो मानव जाति के
जुड़ गए सभी वो अधर्म नाम से

प्रथक हुए कुछ गांव गांव से
उतार दिए कुछ मौत घाट से

इंगित पीछे से कर रहे पुजारी
व्यक्ति,जाति नर-नारी की,

 खीचते सीमा रेख भक्त

अनुचर अनुदिश सब साक्ष्य युक्त

..............................................adhuriiii!!!!!!!!!!!!!!

कितनो ने देखा है भरके आँखें आँखों मे अभी तक..............117




 कितनो ने देखा है भरके आँखें आँखों मे अभी तक

कितने लोग मर गए डूब कर आँखों में अभी तक

उन समझदार लोगों से कोई मिलवाव मुझे
जो बच भी गए हैं डूबने से आँखों में अभी तक


बात कुछ भी नही या ज्यादा बड़ी हो पिछली जिंदगी की
मैं ही बोल रहा तुमने कुछ बताया ही नही अभी तक






आते जाते लोग सालभर और साल फिर कितने जाते हैं..................119



 आते जाते लोग सालभर और साल फिर कितने जाते हैं

और एक साल अपना फिर खोया ख़ुशी से गम मनाते हैं

 

कुछ रंजिस में भूले बैठे है कुछ ही रंजिस भूले बैठे हैं 
प्यार हमारा हार गया और हम खुद को जिता के बैठे हैं

 

उनसे बाजी हार के बैठोगे जिनकी प्यार मोहब्बत भाषा है

इस बरस को तुम्हारे बिना जोड़े तो कितने लगते हैं।.................116




 इस बरस को तुम्हारे बिना जोड़े तो कितने लगते हैं।

सांसों के बिना हर सांस की कटी जिंदगी जैसे लगते हैं।

 

वही पुराने लोग वही पुरानी दुःखती बातें करते है
अब तुम ही समझ लो नए साल भी कैसे लगते है।

 

ये रवाईसे,पटाखे, मोमबत्तियां और ये हँसते लोग
बस एक कमी है जिसके आगे सब फीके लगते हैं।

ये क्या कैसे हुआ इसमे कुछ तो राज था........................115



 

 ये क्या कैसे हुआ इसमे कुछ तो राज था

ये मेरे गलत समय का शायद आगाज था

वो मेरा आखिरी दोस्त भी छोड़ गया मुझे
इस दोस्त पर तो हमे बहुत ज्यादा नाज था


क्या छुटा, बिगड़ा क्या,क्या गलती थी यार
माफ करदे तेरा माफ करना तो मिजाज था

मैं इल्जाम हटाकर तुझको झूठा नही करूँगा
अब वो मेरा राज है जैसे वो तेरा राज था

तू जा पर मेरी टूटी फूटी दुआएँ लेता जा
अब काम नही है,इनका तेरा ही तो काम था

शमन याद भी आये तो लौट कर मत आना
समझ लेना कि गुजरी कहानी का नाम था।

बात एक तुमसे कहे,बात तुम्हारी है............114




 बात एक तुमसे कहे,बात तुम्हारी है

मेरी छोड़ो और कितनो से बात जारी है

 

यार हर बार गलत लोग मिलते है
अब मेरे भरोसे की भरोसे से हरी है

 

मुझसे जो किया था गर वही इश्क है
तो ये मुझसे नही इश्क से गद्दारी है

 

लखनऊ तो जल चुका है मेरे भाई
और बताओ कल कहाँ की तैयारी है

 

ये जो आग बुझ गयी कुछ भी नही
आग जो अंदर है वो बहुत करारी है

 

सांच की आंच क्या है पता नही
और जोर तुम्हारी आवाज भारी है

 

शरणार्थी जब तक शरण में है ठीक है
फिर औकात पे लाना बहुत जरूरी है।

 

हर सिक्का खोटा है जीना भी दुःस्वरी है
न्याय मूर्ति है एक तरफ दूजे पर मक्कारी है

आज मिलो या कल या कभी नही.....................113


 


आज मिलो या कल या कभी नही

अब सब मिल रहा है बस तुम्ही नही

विश्वास जितना जरूरी तो कुछ भी नही
हाँ जरूरी हो पर उतना तो तुम भी नही

एक मशवरा है मेरा भी इस जमाने से
गलत न करो! करो या कुछ भी नही

देखना हो वही जो दिख रहा हो नही
हिल-डुल कर देखो दिखेगा बिल्कुल वही


तुम 

सपने देखे बड़े बड़े........................112

                         



    सपने देखे बड़े बड़े

वो भी हमने खड़े खड़े

 

एक कलम हांथ में पकड़ी
कुछ पन्ने थे जो रहे पड़े

 

कुछ सपनो का हिस्सा थी वो
कुछ लाइनों का किस्सा थी वो

 

आदर भाव से जीती थी वो
जब भी मुझको मिलती थी वो

 

आंखों में कुछ सपन समेटे
घाव पुराने सीती थी वो

 

उन सपनो की बातों में
मैं भी रह जाता राहों में

 

एक राह जो ऐसी पकड़ी
अगले पल में मुझसे बिछड़ी

 

जो नादानी सब करते हैं
हम भी उस पर रहे अड़े
सपने........

 

कमली उसको बोलें तो क्यों 
कमल सी उसकी पंखुड़ियों को

 

एक पहर तक खिली रही जो
सजग रंग से भरी रही वो

 

अगले पहर में सिकुड़ गयी फिर
हवा चली और बिखर गईं फिर

 

भाव अचानक पल बैठा वो
गिरती उसकी पंखुड़ियों को

 

पर्ण वृन्त पर डंठल ही था
मन से पर वह कुंठित ही था

 

वो कुंठा अब भी जाग्रत है
जो कि उसकी आत्मा जीवित है

 

आत्मा और आत्म सम्मान
वैसे जैसे तरकस कमान

 

और आखेटक वही सही है
अहम को अपने भेद सके है
                             .........!!!!!!!!!! adhuri