
सपने देखे बड़े बड़े
वो भी हमने खड़े खड़े
एक कलम हांथ में पकड़ीकुछ पन्ने थे जो रहे पड़े
कुछ सपनो का हिस्सा थी वोकुछ लाइनों का किस्सा थी वो
आदर भाव से जीती थी वोजब भी मुझको मिलती थी वो
आंखों में कुछ सपन समेटेघाव पुराने सीती थी वो
उन सपनो की बातों मेंमैं भी रह जाता राहों में
एक राह जो ऐसी पकड़ीअगले पल में मुझसे बिछड़ी
जो नादानी सब करते हैंहम भी उस पर रहे अड़े
सपने........
कमली उसको बोलें तो क्यों
कमल सी उसकी पंखुड़ियों को
एक पहर तक खिली रही जोसजग रंग से भरी रही वो
अगले पहर में सिकुड़ गयी फिरहवा चली और बिखर गईं फिर
भाव अचानक पल बैठा वोगिरती उसकी पंखुड़ियों को
पर्ण वृन्त पर डंठल ही थामन से पर वह कुंठित ही था
वो कुंठा अब भी जाग्रत हैजो कि उसकी आत्मा जीवित है
आत्मा और आत्म सम्मानवैसे जैसे तरकस कमान
और आखेटक वही सही हैअहम को अपने भेद सके है
.........!!!!!!!!!! adhuri
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