सपने देखे बड़े बड़े........................112

                         



    सपने देखे बड़े बड़े

वो भी हमने खड़े खड़े

 

एक कलम हांथ में पकड़ी
कुछ पन्ने थे जो रहे पड़े

 

कुछ सपनो का हिस्सा थी वो
कुछ लाइनों का किस्सा थी वो

 

आदर भाव से जीती थी वो
जब भी मुझको मिलती थी वो

 

आंखों में कुछ सपन समेटे
घाव पुराने सीती थी वो

 

उन सपनो की बातों में
मैं भी रह जाता राहों में

 

एक राह जो ऐसी पकड़ी
अगले पल में मुझसे बिछड़ी

 

जो नादानी सब करते हैं
हम भी उस पर रहे अड़े
सपने........

 

कमली उसको बोलें तो क्यों 
कमल सी उसकी पंखुड़ियों को

 

एक पहर तक खिली रही जो
सजग रंग से भरी रही वो

 

अगले पहर में सिकुड़ गयी फिर
हवा चली और बिखर गईं फिर

 

भाव अचानक पल बैठा वो
गिरती उसकी पंखुड़ियों को

 

पर्ण वृन्त पर डंठल ही था
मन से पर वह कुंठित ही था

 

वो कुंठा अब भी जाग्रत है
जो कि उसकी आत्मा जीवित है

 

आत्मा और आत्म सम्मान
वैसे जैसे तरकस कमान

 

और आखेटक वही सही है
अहम को अपने भेद सके है
                             .........!!!!!!!!!! adhuri



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