क्यों ये मैं खुद से मचल रहा हूँबड़ी पाबन्दियों में चल रहा हूँ
मुझे देखो मैं हो गया खुदा तो नहीमैं भी एक उम्र से पत्थर रहा हूँ
जो नाम मोहब्बत जो सब करते हैंमैं उसी नाम मोहब्बत में जी रहा हूँ
काम रस्ते में आ जाते हैं बदल की तरहमैं खुद अपने ही लिए बादल रहा हूँ
No comments:
Post a Comment