क्यों ये मैं खुद से मचल रहा हूँ...................120




 क्यों ये मैं खुद से मचल रहा हूँ
बड़ी पाबन्दियों में चल रहा हूँ

 

मुझे देखो मैं हो गया खुदा तो नही
मैं भी एक उम्र से पत्थर रहा हूँ

 

जो नाम मोहब्बत जो सब करते हैं
मैं उसी नाम मोहब्बत में जी रहा हूँ

 

काम रस्ते में आ जाते हैं बदल की तरह
मैं खुद अपने ही लिए बादल रहा हूँ

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