बात एक तुमसे कहे,बात तुम्हारी है............114




 बात एक तुमसे कहे,बात तुम्हारी है

मेरी छोड़ो और कितनो से बात जारी है

 

यार हर बार गलत लोग मिलते है
अब मेरे भरोसे की भरोसे से हरी है

 

मुझसे जो किया था गर वही इश्क है
तो ये मुझसे नही इश्क से गद्दारी है

 

लखनऊ तो जल चुका है मेरे भाई
और बताओ कल कहाँ की तैयारी है

 

ये जो आग बुझ गयी कुछ भी नही
आग जो अंदर है वो बहुत करारी है

 

सांच की आंच क्या है पता नही
और जोर तुम्हारी आवाज भारी है

 

शरणार्थी जब तक शरण में है ठीक है
फिर औकात पे लाना बहुत जरूरी है।

 

हर सिक्का खोटा है जीना भी दुःस्वरी है
न्याय मूर्ति है एक तरफ दूजे पर मक्कारी है

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