सूरज उग रहा है फिर भी साम लगने लगी।
नफ़रत इतनी की मोहब्बत हराम लगने लगी।
चाहत है चाहत थी बस चाहत रहने लगी।।इतना है कि सांस भी दायरे में चलने लगी।
शीशे सी चमकती ये चैत की दोपहर भीगांव से दूर मेरी मौत का इंतजार करने लगी।
सूरज उग रहा है फिर भी साम लगने लगी।
नफ़रत इतनी की मोहब्बत हराम लगने लगी।
चाहत है चाहत थी बस चाहत रहने लगी।।इतना है कि सांस भी दायरे में चलने लगी।
शीशे सी चमकती ये चैत की दोपहर भीगांव से दूर मेरी मौत का इंतजार करने लगी।
एक अर्से से मैं मंदिर नही गया
पर जब गया तब वहाँ,भगवान नही था।1.. जब कस्में रिश्तों पर आकर ठहर जाती है।
तब ये मेरी बातें भी मुझसे मुकर जाती हैं।वो मुझसे मिली और धुंआ हो गयी
मैं आज भी आसमान को देखता रहता हूँ।जीवन सच है।
यहां प्यार से नही
प्यार के नाम से परेशानी है,खुद में खुद से भी कितना झूठा इंसान होता है।
झूठी मोहब्बत का इजहार भी आसान होता है।दो रास्ते एक आदमी
भूला हूँ उसको उसी की याद आती है
नौ इंची चाहरदीवारी में जान जाती है।1.गलतियां करता नही हूँ हो जाती है।
कस्तियाँ किनारो में भी खो जाती है।जीने के तरीके बदले,
बात करने के सलीक़े बदले