जीवन सच है।
तो क्या मैं सच से अनजान हूँ?
कई लोगों को
हमारे प्रिय थे जो
अपनी आंखों के सामने
तड़पता हुआ
कुछ कहने की
अभिलाषा से
कुछ करने की आशा से
जीवन को दांव पर
लगाने के लिए मजबूr
उन्हें खोने का डर
लगा रहता है,
क्योंकि मैं खो खो कर परेशान हूँ।
क्या मेरी उत्पत्ति
डर डर कर जीने के लिए हुई है?
क्या मैं जो सोच रहा हूँ
वो गलत नही हो सकता?
हाँ मैं जो सोच रहा वही सही है।
इस लिए मैं असहाय हूँ।
अपने है जो
जिन्हें मैं अपना मानता हूं ।
उनके लिए मैं कुछ कर नही पाता हूं।
जीवन भर यही दुख रहेगा
क्या शमन जीवन भर असहाय रहेगा?
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