साम लगने लगी........49

 सूरज उग रहा है फिर भी साम लगने लगी।

नफ़रत इतनी की मोहब्बत हराम लगने लगी।

 

चाहत है चाहत थी बस चाहत रहने लगी।।
इतना है कि सांस भी दायरे में चलने लगी।

 

शीशे सी चमकती ये चैत की दोपहर भी
गांव से दूर मेरी मौत का इंतजार करने लगी।



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