शायरी -4..............47

1.. जब कस्में रिश्तों पर आकर ठहर जाती है।

तब ये मेरी बातें भी मुझसे मुकर जाती हैं।

रिश्तों के लिये मैं अपने वादों के खिलाफ गया हूँ।
सोचता कुछ और पर कुछ और ही कर गया हूँ।



2.उनसे मिलने की कोई खास उम्मीद थोड़ी है,
बस एक उम्मीद ही है जो मैंने नही छोड़ी है।


3.आग ऐसी की लोग शमन हो जाये जवानी में।
मैं शमन हूँ इस लिए मरना है अब कहानी में।


4.ये जो मैने किसी को समय दिया है।

हवा को निचोड़ कर पानी पिया है।

किसी को आधे पर छोड़ा!
तब जाके किसी को पूरा किया है।

फिर भी लोग नही समझेंगे कि
मैंने क्या क्या किया है।


5.हाँ ये सच है तुम जरूरत हो मेरी
हक नही तुम पर हकीकत हो मेरी 

जितना हो सके दूर चली जाओ मुझसे
इससे पहले की मुझे आदत हो तेरी


6.दो दिन की यारी, पर बरसो का यार हूँ,
तेरे जीने के लिए, मैं मरने को तैयार हूँ।

मैंने हाथ काट था पर बीमार नही हुआ,
वो तकलीफ में है इसलिए मैं बीमार हूँ।

7.तेरे इंतजार करने का इंतजार भी बरसों किया है मैंने।
आग जलाने के लिए आग तैयार भी बरसों किया है मैंने।

मेरी औकात और अपनी जात दिखाकर छोड़ा था मुझे,
अब मुझसे ही न कहो कि प्यार तुमसे ही किया है मैंने।


8.ये रात से सुबह तक का सफ़र
मैं कहने भी कहाँ जाऊ किधर

चाँद में सूरज की जैसी है तपन
चलो शमन छोड़ो एक ये भी शहर

9.तेरी मोहब्बत का सुक्रिया अदा करूँ,

जो कब और कब तक रही थी?

उसकी जुदाई की आग में बरसों जला हूँ,

वो सही भी थी कहाँ तक सही थी?


10.ख्वाब में न था उसको भी अपना ख्वाब कह गए
कुछ बातें हो गयी कि हम अपने आप रह गए


बीच मे हमको छोड़कर जाने वाले कहते हैं कि
वो अपना रुतबा भी इतना लाजबाब कर गए।


























No comments:

Post a Comment