एक अर्से से मैं मंदिर नही गया
पर जब गया तब वहाँ,भगवान नही था।न चाहते भरोसा उस पर भी हो गया
क्योकिं मेरा दिल, कभी बेईमान नही था।
आखिरी बार का आदमी याद है मुझे
क्योकि उस आदमी में भी इंसान नही था।
पता नही अबकी ज्यादा तकलीफ हुई
इससे तो मुझे कोई ज्यादा अरमान नही था।
दोस्ती में मुझे सजाये मौत मिल गयी।
मैं सजा पाऊँ ये किसी का फ़रमान नही था
वही जो तमाम उम्र की दुआएं देता रहा
मेरी हत्या की साजिश से अनजान नही था।
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