"अच्छा नही है।......153

 



कितना ,कौन,कब "अच्छा नही है।

सब पता है क्या है "अच्छा नही है।

 

तबीयत भी नही खराब
और हाल भी "अच्छा नही है।

 

दिल दुकान बन गया है
दुकानदार भी "अच्छा नही है।

 

वैसे तो तुमसे प्यार करता हूँ
न मानो, कोई बात "अच्छा नही है।

 

वो कहती भाव बढा दोगे तुम मेरे
ज्यादा तारीफ करना "अच्छा नही है।

 

गांव तो गांव है और गांव में अब
पुराने जैसा,माहौल "अच्छा नही हैं ।

 

आदमी तो वो बेमिसाल है शमन
बस थोड़ा जबान का "अच्छा नही है।

 

वो बात न करनी हो तो कहता है
हेल्लोल्लो यहाँ नेटवर्क "अच्छा नही है।

 

मंजिल गर दिल है,तो बता दूं
पहुंचने रास्ता बिल्कुल "अच्छा नही है।

 

           मरे कई जिसके तिरछे निशाने से

           यार वो कैसे नजर का "अच्छा नही है

           

किसी ने कहा था मुझसे की तू
शायर अच्छा है पर आदमी अच्छा नही है।

 

                          "शमन तुम,"

वो ज़ुल्फ़ झटक कर घूमी .....152

 



कभी हँस के कभी गा कर|

कभी रो रो के गुजारा किया|

बीच मे हैं इस लिये कि
हमने किनारों से किनारा किया|

 

वो ज़ुल्फ़ झटक कर घूमी और
फिर उसने नजरो से इशारा किया|

 

मैं होठो के लब्जो से था बंधा,पर
दिल मेरा दिल से पुकारा किया|

वो हमसफर भी बोझ है मुझे.........150



 एक गुलाब भी फ़िरदौस है मुझे

लगता तो समंदर भी ओस है मुझे

 

जो मेरा होकर साथ नही चलता
वो हमसफर भी बोझ है मुझे

                                          -shman

     

 

शायरों के अपने दुखड़े है ..............149

 



किसी के कहने से हम चलते नही है।

ठोकरों से भी हम सम्भलते नही है।

 

शायरों के अपने दुखड़े है शमन
ख़ुशी के माहौल ज्यादा टिकते नही है।

 

शायरी लगती सौतन है मेरे महबूब को
कहती है हम उससे प्यार करते नही है।

मेरा गांव (Part-1st).................138



 गांव में

नदी के किनारे
एक छत मेरी भी है
मैं अक्सर वहाँ बैठता हूँ
फिर गांव देखता हूँ
मुझे साफ साफ दिखता है
मुझे दूर दूर तक दिखता है,गांव
गांव की टूटी सड़के,
अधगिरे इंसानी मकान,
छप्पर, और गढ्ढे में समसान
काम दिखाने के लिए
बस नाम के शौचालय
जो चुनाव में पर्चे चिपनकाने
के काम आएँगे,
क्योंकि फूस की टटिया पर पर्चे चिपकाने से
नेता जी के पेट मे छेंद हो जाता है
लेकिन नेता जी जो खा रहे है
अब भी उसी से चिपकेगे।
भाई नही छूटती है, आदत है,


                                         आदत है,!!

सुबह-सुबह
पुआल की खरई पर बच्चों के खेलने की
बूढों की धूप में चठिया लगाकर चकल्लस करने की
अपनी तीसमारी बताने की
लौंडो की बिना मतलब घूमने की
5 साल गांव में प्रधान होता है
चुनाव में यहां प्रधान होते हैं
जमातें जमती है सुबह सुबह द्वारे उनके
उनको जीता रहे थे 250 वोटो से
ये जमाती अगली सुबह डेरा बदलते है,
दूसरे प्रधान के वहाँ
इनको 500 वोटों से विजय दिलवा रहे होते है,
और दूसरे दिन चल बैठते है तीसरे के वहाँ
पानी की तरह बहते है दलाली लोग.........!
           और
पानी सड़क पर बहता है,
क्योंकि..परधान .! पानी बहुत है. नाली नही हैं/
ये पानी रोज सड़क पर बहकर नदी तक जाता है
और 50 साल की कोशिश में एक बार भी,
नदी गांव तक नही आ पायी
नदी इसी गुस्से से हर बार
सब खेत डुबा देती है, बर्बाद कर देती है फसल
सरकार से गांव वालों को राहत इस लिए नही मिलती है
की उनके घर नही डूबे है
किसी की जान नही गयी है
कोई धरने पर नही बैठा है
यहाँ सब
थोड़ा स्वाभिमानी है
थोड़ा पागल
थोड़ा हटे है
थोड़ा बुद्धू है, गांव के लोग
हक को भी भीख समझते है
और राजनीति को नीति राज

 


अब जमाना वो नही है कि रात को भूखे सोये,
दम लगी फसल चली गयी
पर मेहनत से (पैदा किया)पाला लड़का
लखनऊ भेज रखा है।
क्योकि परधान को भी तो जिंदा रखना है
उसके मनरेगा के पैसों से,
प्रधान न मरे ...
वो दूसरे पैसे कमा लेगा
कमा लेगा भीख के बदले स्वाभिमान
दूसरा बेटा कविता लिखता है
सबको बताएगा गांव के हाल और हालात
वो सब लिखेगा, जो सच है,या जो सच के पीछे है।
बताएगा सत्य से गांव की कमजोरी
आत्मसम्मान से उठती मजबूरी
खुशी बताएगा,दर्द की बात बताएगा
और हर हल्कू की सरद रात बताएगा
दुःखती हुई गरीबी की जात बताएगा

 

 ...... पार्ट-2nd पढ़े

वो करवा चौथ का व्रत रखती थी।...............137

 


उसका निकाह हो गया है

पर वो करवा चौथ का व्रत रखती थी।

कजरी तीज को तो 24 घंटे पानी तक नही पीती थी,

उसने हर मस्जिद-मन्दिर,पीर-पैगम्बर,अली-वली,

दर,दरख़्त ,दरगाह,और दुनियाँ के हर देवता से मुझे माँगा

पर नही मिला मैं उसे

और नज़दीक भी न रह पाए

मैं गया कुछ महीने बाद 

उसी नुक्कड़ पर

चूने से लिखे वेलकम के निशान भद्दे पड़ गए थे

उस दिन वो तीसरी बार ससुराल जा रही थी,

मैं हर बार की तरह खड़ा देखता ही रह गया

पर अबकी न वो पलटी न मुस्कुराई 

सामने खड़ी गाड़ी के सीसे में साफ दिख रहा था

दर्द और आंशू थें उसकी आँखों में

वो कुछ नही बोली पर 

बहुत कुछ कहना चाहती थी

और मैं अनभिज्ञ सा बना सब कुछ जनता था।

मायरा उसकी भतीजी

गुस्से से मुझे देखकर रोती हुई अंदर चली गयी।

कुछ भी वापस नही आता 

सब का सब, वैसे का वैसा नही आता

समय के साथ बदल जाते है 

लोग,सपने,अपने , हाल और हालात

मिलेगा बेहतर,नया पर

न वो पुरानी बात

न वैसी रात 

और न ही वो वापस आएगी।

मैं नही समझ पा रहा था, तब...!

वो प्यार .......

वो गुस्सा.......

वो रूठ जाना और फिर

कभी-कभी मुझ पर मुझसे ज्यादा 

अपना हक जमाना...

फ़िल्म स्टोरी के हिसाब से इसमें नया कुछ नही था

पर था मेरे लिए 

सब कुछ नया था, 

पर शायद जरूरत से ज्यादा या जरूरत से पहले

मिलने से मेरा मन असंतुष्ट था।

 

गलत था।


जनता भोली बहुत देहातों वाली................136

 


 बातें देहात की 

रातें देहात की
करवटें देहात की
सिलवटे देहात की
किसी ने न कभी बात की
की भी तो अपनी जात की
विनम्र सी एक बात की
समग्र से एक गांव की
कुछ वोट ले रहे है
अम्बेडकर के नाम की
जरूरते है सब की
दवा, सड़क मकान की
हम बता रहे नेताओ से
आवाज में हिन्दुस्तान की
इज्जत करना सीख लो
तुम देहाती इंसान की
 बातें देहात की .........................

 


सौ मे से 75 वाली
अब तक कि 77 वाली
साफ सफाई मेहतर वाली
देहाती यह बेहतर वाली
सकल घनी आबादी वाली
धोती कुर्ता खादी वाली
हर घर की उस बाई वाली
मां सी तुम्हारी आई वाली
रात भयानक काली वाली
ये सब रहते खाली खाली
अड़िया बर्तन गगरी खाली
अबकी गेहूं की डेहरी खाली
सुबह जगे तो काम से खाली
रात को सोये तो पेट भी खाली
हमको एक बात बस कहना खाली
जनता भोली बहुत देहात की
                                बातें देहात की ......................



हम तेरे ही रह जाएंगे।..............135

 



तू मेरी न हो पाएगी

हम तेरे ही रह जाएंगे।



प्यार करेंगे तुमसे और

तुमसे ही करते जाएंगे



दिन रात चलेंगे मंजिल को

खुदको फिर रास्ते पर पाएंगे


कभी हुआ कुछ ऐसा यदि

हमें बिछड़ना पड़ जाता है!



तुम मर मर के जी जाओगी

हम जीते जी मर जायेंगे।


मोहब्बत का दूसरा नाम दूरी है।...........................134

 मोहब्बत का दूसरा नाम दूरी है।

मुहब्बत से दूर रहना जरूरी है।

 

सब कुछ होने के बाद बिछड़ना होता है,
सो मैंने ख़्वाईसे छोड़ी अधूरी हैं।

मैं उसे पाने से ज्यादा खोने लगा हूँ।.............132

 



कुछ किरदार ऐसे है जिन्हें जीने लगा हूँ।

मैं उसे पाने से ज्यादा खोने लगा हूँ।


तुम्हे केवल मैं दिखता हूँ हँसता हुआ 

दरासल अंदर से मैं अब रोने लगा हूँ।


घूट आँशुओँ के पीने की आदत क्या पड़ी

आज-कल मैं समंदर सा होने लगा हूँ।


एक हकीकत है धधकती आग सी 

और मैं उस आग को छूने लगा हूँ।