मेरा गांव (Part-1st).................138



 गांव में

नदी के किनारे
एक छत मेरी भी है
मैं अक्सर वहाँ बैठता हूँ
फिर गांव देखता हूँ
मुझे साफ साफ दिखता है
मुझे दूर दूर तक दिखता है,गांव
गांव की टूटी सड़के,
अधगिरे इंसानी मकान,
छप्पर, और गढ्ढे में समसान
काम दिखाने के लिए
बस नाम के शौचालय
जो चुनाव में पर्चे चिपनकाने
के काम आएँगे,
क्योंकि फूस की टटिया पर पर्चे चिपकाने से
नेता जी के पेट मे छेंद हो जाता है
लेकिन नेता जी जो खा रहे है
अब भी उसी से चिपकेगे।
भाई नही छूटती है, आदत है,


                                         आदत है,!!

सुबह-सुबह
पुआल की खरई पर बच्चों के खेलने की
बूढों की धूप में चठिया लगाकर चकल्लस करने की
अपनी तीसमारी बताने की
लौंडो की बिना मतलब घूमने की
5 साल गांव में प्रधान होता है
चुनाव में यहां प्रधान होते हैं
जमातें जमती है सुबह सुबह द्वारे उनके
उनको जीता रहे थे 250 वोटो से
ये जमाती अगली सुबह डेरा बदलते है,
दूसरे प्रधान के वहाँ
इनको 500 वोटों से विजय दिलवा रहे होते है,
और दूसरे दिन चल बैठते है तीसरे के वहाँ
पानी की तरह बहते है दलाली लोग.........!
           और
पानी सड़क पर बहता है,
क्योंकि..परधान .! पानी बहुत है. नाली नही हैं/
ये पानी रोज सड़क पर बहकर नदी तक जाता है
और 50 साल की कोशिश में एक बार भी,
नदी गांव तक नही आ पायी
नदी इसी गुस्से से हर बार
सब खेत डुबा देती है, बर्बाद कर देती है फसल
सरकार से गांव वालों को राहत इस लिए नही मिलती है
की उनके घर नही डूबे है
किसी की जान नही गयी है
कोई धरने पर नही बैठा है
यहाँ सब
थोड़ा स्वाभिमानी है
थोड़ा पागल
थोड़ा हटे है
थोड़ा बुद्धू है, गांव के लोग
हक को भी भीख समझते है
और राजनीति को नीति राज

 


अब जमाना वो नही है कि रात को भूखे सोये,
दम लगी फसल चली गयी
पर मेहनत से (पैदा किया)पाला लड़का
लखनऊ भेज रखा है।
क्योकि परधान को भी तो जिंदा रखना है
उसके मनरेगा के पैसों से,
प्रधान न मरे ...
वो दूसरे पैसे कमा लेगा
कमा लेगा भीख के बदले स्वाभिमान
दूसरा बेटा कविता लिखता है
सबको बताएगा गांव के हाल और हालात
वो सब लिखेगा, जो सच है,या जो सच के पीछे है।
बताएगा सत्य से गांव की कमजोरी
आत्मसम्मान से उठती मजबूरी
खुशी बताएगा,दर्द की बात बताएगा
और हर हल्कू की सरद रात बताएगा
दुःखती हुई गरीबी की जात बताएगा

 

 ...... पार्ट-2nd पढ़े

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