गांव में
नदी के किनारेएक छत मेरी भी हैमैं अक्सर वहाँ बैठता हूँफिर गांव देखता हूँमुझे साफ साफ दिखता हैमुझे दूर दूर तक दिखता है,गांवगांव की टूटी सड़के,अधगिरे इंसानी मकान,छप्पर, और गढ्ढे में समसानकाम दिखाने के लिएबस नाम के शौचालयजो चुनाव में पर्चे चिपनकानेके काम आएँगे,क्योंकि फूस की टटिया पर पर्चे चिपकाने सेनेता जी के पेट मे छेंद हो जाता हैलेकिन नेता जी जो खा रहे हैअब भी उसी से चिपकेगे।भाई नही छूटती है, आदत है,
आदत है,!!
सुबह-सुबहपुआल की खरई पर बच्चों के खेलने कीबूढों की धूप में चठिया लगाकर चकल्लस करने कीअपनी तीसमारी बताने कीलौंडो की बिना मतलब घूमने की5 साल गांव में प्रधान होता हैचुनाव में यहां प्रधान होते हैंजमातें जमती है सुबह सुबह द्वारे उनकेउनको जीता रहे थे 250 वोटो सेये जमाती अगली सुबह डेरा बदलते है,दूसरे प्रधान के वहाँइनको 500 वोटों से विजय दिलवा रहे होते है,और दूसरे दिन चल बैठते है तीसरे के वहाँपानी की तरह बहते है दलाली लोग.........!औरपानी सड़क पर बहता है,क्योंकि..परधान .! पानी बहुत है. नाली नही हैं/ये पानी रोज सड़क पर बहकर नदी तक जाता हैऔर 50 साल की कोशिश में एक बार भी,नदी गांव तक नही आ पायीनदी इसी गुस्से से हर बारसब खेत डुबा देती है, बर्बाद कर देती है फसलसरकार से गांव वालों को राहत इस लिए नही मिलती हैकी उनके घर नही डूबे हैकिसी की जान नही गयी हैकोई धरने पर नही बैठा हैयहाँ सबथोड़ा स्वाभिमानी हैथोड़ा पागलथोड़ा हटे हैथोड़ा बुद्धू है, गांव के लोगहक को भी भीख समझते हैऔर राजनीति को नीति राज
अब जमाना वो नही है कि रात को भूखे सोये,दम लगी फसल चली गयीपर मेहनत से (पैदा किया)पाला लड़कालखनऊ भेज रखा है।क्योकि परधान को भी तो जिंदा रखना हैउसके मनरेगा के पैसों से,प्रधान न मरे ...वो दूसरे पैसे कमा लेगाकमा लेगा भीख के बदले स्वाभिमानदूसरा बेटा कविता लिखता हैसबको बताएगा गांव के हाल और हालातवो सब लिखेगा, जो सच है,या जो सच के पीछे है।बताएगा सत्य से गांव की कमजोरीआत्मसम्मान से उठती मजबूरीखुशी बताएगा,दर्द की बात बताएगाऔर हर हल्कू की सरद रात बताएगादुःखती हुई गरीबी की जात बताएगा
...... पार्ट-2nd पढ़े
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