उसका निकाह हो गया है
पर वो करवा चौथ का व्रत रखती थी।
कजरी तीज को तो 24 घंटे पानी तक नही पीती थी,
उसने हर मस्जिद-मन्दिर,पीर-पैगम्बर,अली-वली,
दर,दरख़्त ,दरगाह,और दुनियाँ के हर देवता से मुझे माँगा
पर नही मिला मैं उसे
और नज़दीक भी न रह पाए
मैं गया कुछ महीने बाद
उसी नुक्कड़ पर
चूने से लिखे वेलकम के निशान भद्दे पड़ गए थे
उस दिन वो तीसरी बार ससुराल जा रही थी,
मैं हर बार की तरह खड़ा देखता ही रह गया
पर अबकी न वो पलटी न मुस्कुराई
सामने खड़ी गाड़ी के सीसे में साफ दिख रहा था
दर्द और आंशू थें उसकी आँखों में
वो कुछ नही बोली पर
बहुत कुछ कहना चाहती थी
और मैं अनभिज्ञ सा बना सब कुछ जनता था।
मायरा उसकी भतीजी
गुस्से से मुझे देखकर रोती हुई अंदर चली गयी।
कुछ भी वापस नही आता
सब का सब, वैसे का वैसा नही आता
समय के साथ बदल जाते है
लोग,सपने,अपने , हाल और हालात
मिलेगा बेहतर,नया पर
न वो पुरानी बात
न वैसी रात
और न ही वो वापस आएगी।
मैं नही समझ पा रहा था, तब...!
वो प्यार .......
वो गुस्सा.......
वो रूठ जाना और फिर
कभी-कभी मुझ पर मुझसे ज्यादा
अपना हक जमाना...
फ़िल्म स्टोरी के हिसाब से इसमें नया कुछ नही था
पर था मेरे लिए
सब कुछ नया था,
पर शायद जरूरत से ज्यादा या जरूरत से पहले
मिलने से मेरा मन असंतुष्ट था।
गलत था।
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