एक गुलाब भी फ़िरदौस है मुझे
लगता तो समंदर भी ओस है मुझे
जो मेरा होकर साथ नही चलतावो हमसफर भी बोझ है मुझे
-shman
एक गुलाब भी फ़िरदौस है मुझे
लगता तो समंदर भी ओस है मुझे
जो मेरा होकर साथ नही चलतावो हमसफर भी बोझ है मुझे
-shman
किसी के कहने से हम चलते नही है।ठोकरों से भी हम सम्भलते नही है।
शायरों के अपने दुखड़े है शमनख़ुशी के माहौल ज्यादा टिकते नही है।
शायरी लगती सौतन है मेरे महबूब कोकहती है हम उससे प्यार करते नही है।
गांव में
नदी के किनारेएक छत मेरी भी हैमैं अक्सर वहाँ बैठता हूँफिर गांव देखता हूँमुझे साफ साफ दिखता हैमुझे दूर दूर तक दिखता है,गांवगांव की टूटी सड़के,अधगिरे इंसानी मकान,छप्पर, और गढ्ढे में समसानकाम दिखाने के लिएबस नाम के शौचालयजो चुनाव में पर्चे चिपनकानेके काम आएँगे,क्योंकि फूस की टटिया पर पर्चे चिपकाने सेनेता जी के पेट मे छेंद हो जाता हैलेकिन नेता जी जो खा रहे हैअब भी उसी से चिपकेगे।भाई नही छूटती है, आदत है,
आदत है,!!
सुबह-सुबहपुआल की खरई पर बच्चों के खेलने कीबूढों की धूप में चठिया लगाकर चकल्लस करने कीअपनी तीसमारी बताने कीलौंडो की बिना मतलब घूमने की5 साल गांव में प्रधान होता हैचुनाव में यहां प्रधान होते हैंजमातें जमती है सुबह सुबह द्वारे उनकेउनको जीता रहे थे 250 वोटो सेये जमाती अगली सुबह डेरा बदलते है,दूसरे प्रधान के वहाँइनको 500 वोटों से विजय दिलवा रहे होते है,और दूसरे दिन चल बैठते है तीसरे के वहाँपानी की तरह बहते है दलाली लोग.........!औरपानी सड़क पर बहता है,क्योंकि..परधान .! पानी बहुत है. नाली नही हैं/ये पानी रोज सड़क पर बहकर नदी तक जाता हैऔर 50 साल की कोशिश में एक बार भी,नदी गांव तक नही आ पायीनदी इसी गुस्से से हर बारसब खेत डुबा देती है, बर्बाद कर देती है फसलसरकार से गांव वालों को राहत इस लिए नही मिलती हैकी उनके घर नही डूबे हैकिसी की जान नही गयी हैकोई धरने पर नही बैठा हैयहाँ सबथोड़ा स्वाभिमानी हैथोड़ा पागलथोड़ा हटे हैथोड़ा बुद्धू है, गांव के लोगहक को भी भीख समझते हैऔर राजनीति को नीति राज
अब जमाना वो नही है कि रात को भूखे सोये,दम लगी फसल चली गयीपर मेहनत से (पैदा किया)पाला लड़कालखनऊ भेज रखा है।क्योकि परधान को भी तो जिंदा रखना हैउसके मनरेगा के पैसों से,प्रधान न मरे ...वो दूसरे पैसे कमा लेगाकमा लेगा भीख के बदले स्वाभिमानदूसरा बेटा कविता लिखता हैसबको बताएगा गांव के हाल और हालातवो सब लिखेगा, जो सच है,या जो सच के पीछे है।बताएगा सत्य से गांव की कमजोरीआत्मसम्मान से उठती मजबूरीखुशी बताएगा,दर्द की बात बताएगाऔर हर हल्कू की सरद रात बताएगादुःखती हुई गरीबी की जात बताएगा
...... पार्ट-2nd पढ़े
उसका निकाह हो गया हैपर वो करवा चौथ का व्रत रखती थी।कजरी तीज को तो 24 घंटे पानी तक नही पीती थी,उसने हर मस्जिद-मन्दिर,पीर-पैगम्बर,अली-वली,दर,दरख़्त ,दरगाह,और दुनियाँ के हर देवता से मुझे माँगापर नही मिला मैं उसेऔर नज़दीक भी न रह पाएमैं गया कुछ महीने बादउसी नुक्कड़ परचूने से लिखे वेलकम के निशान भद्दे पड़ गए थेउस दिन वो तीसरी बार ससुराल जा रही थी,मैं हर बार की तरह खड़ा देखता ही रह गयापर अबकी न वो पलटी न मुस्कुराईसामने खड़ी गाड़ी के सीसे में साफ दिख रहा थादर्द और आंशू थें उसकी आँखों मेंवो कुछ नही बोली परबहुत कुछ कहना चाहती थीऔर मैं अनभिज्ञ सा बना सब कुछ जनता था।मायरा उसकी भतीजीगुस्से से मुझे देखकर रोती हुई अंदर चली गयी।कुछ भी वापस नही आतासब का सब, वैसे का वैसा नही आतासमय के साथ बदल जाते हैलोग,सपने,अपने , हाल और हालातमिलेगा बेहतर,नया परन वो पुरानी बातन वैसी रातऔर न ही वो वापस आएगी।मैं नही समझ पा रहा था, तब...!वो प्यार .......वो गुस्सा.......वो रूठ जाना और फिरकभी-कभी मुझ पर मुझसे ज्यादाअपना हक जमाना...फ़िल्म स्टोरी के हिसाब से इसमें नया कुछ नही थापर था मेरे लिएसब कुछ नया था,पर शायद जरूरत से ज्यादा या जरूरत से पहलेमिलने से मेरा मन असंतुष्ट था।
गलत था।
बातें देहात की
रातें देहात कीकरवटें देहात कीसिलवटे देहात कीकिसी ने न कभी बात कीकी भी तो अपनी जात कीविनम्र सी एक बात कीसमग्र से एक गांव कीकुछ वोट ले रहे हैअम्बेडकर के नाम कीजरूरते है सब कीदवा, सड़क मकान कीहम बता रहे नेताओ सेआवाज में हिन्दुस्तान कीइज्जत करना सीख लोतुम देहाती इंसान की
बातें देहात की .........................
सौ मे से 75 वालीअब तक कि 77 वालीसाफ सफाई मेहतर वालीदेहाती यह बेहतर वालीसकल घनी आबादी वालीधोती कुर्ता खादी वालीहर घर की उस बाई वालीमां सी तुम्हारी आई वालीरात भयानक काली वालीये सब रहते खाली खालीअड़िया बर्तन गगरी खालीअबकी गेहूं की डेहरी खालीसुबह जगे तो काम से खालीरात को सोये तो पेट भी खालीहमको एक बात बस कहना खालीजनता भोली बहुत देहात की
बातें देहात की ......................
तू मेरी न हो पाएगी हम तेरे ही रह जाएंगे। प्यार करेंगे तुमसे और तुमसे ही करते जाएंगे। दिन रात चलेंगे मंजिल को खुदको फिर रास्ते पर पाएंगे कभी हुआ कुछ ऐसा यदि हमें बिछड़ना पड़ जाता है! तुम मर मर के जी जाओगी हम जीते जी मर जायेंगे। |
मोहब्बत का दूसरा नाम दूरी है।
मुहब्बत से दूर रहना जरूरी है।
सब कुछ होने के बाद बिछड़ना होता है,सो मैंने ख़्वाईसे छोड़ी अधूरी हैं।
कुछ किरदार ऐसे है जिन्हें जीने लगा हूँ।
मैं उसे पाने से ज्यादा खोने लगा हूँ।
तुम्हे केवल मैं दिखता हूँ हँसता हुआ
दरासल अंदर से मैं अब रोने लगा हूँ।
घूट आँशुओँ के पीने की आदत क्या पड़ी
आज-कल मैं समंदर सा होने लगा हूँ।
एक हकीकत है धधकती आग सी
और मैं उस आग को छूने लगा हूँ।
बात कहने की आयी तो हम सब कहेंगे।
तब का तब कहा है अब का अब कहेगे।
चलो आज छोड़ते है कुछ अधूरी बातें
अगले जन्म मिलना तो बैठकर करेंगे।
हम बातें तुम्हारे अलावा किस्से करेगे।
तुम्हारे बिना हम ऐसे कब तक चलेंगे।
पेड़ नदी तालाब फूल और रास्ते मिलेंगे।
वो तुम्हारे बिना न जाने कैसे लगेगें।
हवा बदलेगी और ये बादल छटेगें
सब अपने अपने ख़ुदा की बाते करेंगे।
तुम्हरा जिक्र आ भी गया तो हम
ख़ुद को गलत,अपनी गलती कहेंगे।
अधूरी कहानी का किरदार हो जरूरी
तुम्हे अगली कहानी में पूरा करेंगे।
जिंदा रहना तो सिखा दिया है तुमने
अब ये भी तो बता दो कि कैसे जिएंगे।