महंगा पड़ा देर कर देना.......158




सब कुछ मजाक में लेना
किसी से कुछ कहना हो
उस बात को भी भूल जाना
देर से जगना देर से सोना
हर बात सहम कर देर से कहना
कुछ कुछ कहना कुछ न कहना
जिससे बातों का घुटकर रह जाना
महंगा पड़ा देर कर देना


सिर्फ आज का सोचा
या कल के बाद का सोचा
कल क्या भूल रहा था मैं
शमन" थोड़ा दे से सोचा 
ये सोच कहाँ रुक जाए
और दिल को कहाँ से चलना
महंगा पड़ा देर कर देना


न फेल हुआ मैं
न गाड़ी छूटी मेरी
न एक्सीडेंट बचा मेरा
न टूटा ख्वाब रचा मेरा
ये देर से पहुंचना मंजिल पर
सारा जीवन बंजारा कर देगा
क्या शौक बचे है मेरे
आँख मूंद कर रो लेना
पैर फैलाकर सो जाना
महंगा पड़ा देर कर देना


वो न जाने कितना जाड़ा पड़ा
बदल रोये और कोहरा भी पड़ा
फिर सूखे इस तरह से ताल भी
शमन" समन्दर था जिसमे सूखा पड़ा
महंगा पड़ा उसका जल्दी चले जाना
महंगा पड़ा बादल देर से आना
बहुत कुछ से फर्क नही पड़ता पर अबकी
महंगा पड़ा देर कर देना
वहुत महंगा पड़ा देर कर देना
बहुत...........



गले लगना है मुझे कसके तुम्हें....... 157




 

शमन तुमसे बिछड़ना भी नही है
जीते जी तुम्हारा होना भी नही है।

मेरे सपने में भी तू आये
और मुझे सोना भी नही है।

कोई मेरा दर्द बाँट ले पास बैठकर
और मुझे रोना नही भी है।

फिर क्यों खेलते है लोग
जबकि शमन कोई खिलौना भी नही है।

गले लगना है मुझे कसके तुम्हें
गैर हो तुम्हे हाथ से भी छूना भी नही है।

खुद पर एक कहानी बनाएं.......156

 



खुद पर एक कहानी बनाएं
हो,अलाप कम ज्यादा अदायें

जिसमें बोलता न हो कोई
तीखा सा तो बिल्कुल नही

न हुआ जो चाह कर भी
उसको उसमें कर दिखायें

और दिखायें प्यार को,सम्मान को
दया,द्रष्टी,ध्यान को स्वाभिमान को

बनाये अग्रजों हेतु राह को
बनाई राह से फिर कांटे हटाये

हटे न काटें रास्तो से अगर तो
काँटो पर फिर पलके बिछाये

गुम रहा हूँ मैं जहां में
खुद को वहां का खोजी बताये

बतायें हम रहे है भीजते
बताएं तुमको रहे है सींचते

बताएं अपने सारे कष्ट को
और बताएं भारत के ध्रतराष्ट्र को

करें जाग जाने का आह्वान सबसे
और भी बतायें अंधो में चौहान सबसे

वह हुआ जो सारा बताएं
बिल्कुल हुआ वैसा बतायें

हर सदी के राज खोले
अनकही सब बात बोले

बतायें सिकंदर वाली बात को
हर जात की उस मात को
बतायें हम बैठे रहै घरों में
बताएं

हर तरफ से आयें हवाएं
मेरा पता न मुझको बताएं

तुम कहो तो चलती गाड़ी में भी चला करें।.......155




हम इसारे पर नाचेंगें,लेकिन बस उसके इसारे चला करें।

हम तुम्हारे है तो क्या,तुम्हारे कहने पर तुम्हारा बुरा करें।

 

तुम कहो तो ठहर जाए तुम्हारे पास हम
तुम कहो तो चलती गाड़ी में भी चला करें।

 

मेरी ख्वाइश का क्या जरूरी तो तुम्हारी है
वो लड़का तुम्हे मिल जाय हम बस यही दुआ करें।

 

कैसे ये क्यो, यूँ ही जलाने के बाद बुझ जाते है चराग
खूबी तब है जब रोज सब अपने आप जला करें।

 

उसके शिकवे ही नही खतम होते है कई साल से
कई बार मेरा मन था, कि हम भी कुछ गिला करें।

 

बहुत सारी जान बाकी है अभी शमन में
खुदा मुझे गम दे पर गम भी मुस्कुराकर मिला करें।

"अच्छा नही है।......153

 



कितना ,कौन,कब "अच्छा नही है।

सब पता है क्या है "अच्छा नही है।

 

तबीयत भी नही खराब
और हाल भी "अच्छा नही है।

 

दिल दुकान बन गया है
दुकानदार भी "अच्छा नही है।

 

वैसे तो तुमसे प्यार करता हूँ
न मानो, कोई बात "अच्छा नही है।

 

वो कहती भाव बढा दोगे तुम मेरे
ज्यादा तारीफ करना "अच्छा नही है।

 

गांव तो गांव है और गांव में अब
पुराने जैसा,माहौल "अच्छा नही हैं ।

 

आदमी तो वो बेमिसाल है शमन
बस थोड़ा जबान का "अच्छा नही है।

 

वो बात न करनी हो तो कहता है
हेल्लोल्लो यहाँ नेटवर्क "अच्छा नही है।

 

मंजिल गर दिल है,तो बता दूं
पहुंचने रास्ता बिल्कुल "अच्छा नही है।

 

           मरे कई जिसके तिरछे निशाने से

           यार वो कैसे नजर का "अच्छा नही है

           

किसी ने कहा था मुझसे की तू
शायर अच्छा है पर आदमी अच्छा नही है।

 

                          "शमन तुम,"

वो ज़ुल्फ़ झटक कर घूमी .....152

 



कभी हँस के कभी गा कर|

कभी रो रो के गुजारा किया|

बीच मे हैं इस लिये कि
हमने किनारों से किनारा किया|

 

वो ज़ुल्फ़ झटक कर घूमी और
फिर उसने नजरो से इशारा किया|

 

मैं होठो के लब्जो से था बंधा,पर
दिल मेरा दिल से पुकारा किया|

वो हमसफर भी बोझ है मुझे.........150



 एक गुलाब भी फ़िरदौस है मुझे

लगता तो समंदर भी ओस है मुझे

 

जो मेरा होकर साथ नही चलता
वो हमसफर भी बोझ है मुझे

                                          -shman

     

 

शायरों के अपने दुखड़े है ..............149

 



किसी के कहने से हम चलते नही है।

ठोकरों से भी हम सम्भलते नही है।

 

शायरों के अपने दुखड़े है शमन
ख़ुशी के माहौल ज्यादा टिकते नही है।

 

शायरी लगती सौतन है मेरे महबूब को
कहती है हम उससे प्यार करते नही है।

मेरा गांव (Part-1st).................138



 गांव में

नदी के किनारे
एक छत मेरी भी है
मैं अक्सर वहाँ बैठता हूँ
फिर गांव देखता हूँ
मुझे साफ साफ दिखता है
मुझे दूर दूर तक दिखता है,गांव
गांव की टूटी सड़के,
अधगिरे इंसानी मकान,
छप्पर, और गढ्ढे में समसान
काम दिखाने के लिए
बस नाम के शौचालय
जो चुनाव में पर्चे चिपनकाने
के काम आएँगे,
क्योंकि फूस की टटिया पर पर्चे चिपकाने से
नेता जी के पेट मे छेंद हो जाता है
लेकिन नेता जी जो खा रहे है
अब भी उसी से चिपकेगे।
भाई नही छूटती है, आदत है,


                                         आदत है,!!

सुबह-सुबह
पुआल की खरई पर बच्चों के खेलने की
बूढों की धूप में चठिया लगाकर चकल्लस करने की
अपनी तीसमारी बताने की
लौंडो की बिना मतलब घूमने की
5 साल गांव में प्रधान होता है
चुनाव में यहां प्रधान होते हैं
जमातें जमती है सुबह सुबह द्वारे उनके
उनको जीता रहे थे 250 वोटो से
ये जमाती अगली सुबह डेरा बदलते है,
दूसरे प्रधान के वहाँ
इनको 500 वोटों से विजय दिलवा रहे होते है,
और दूसरे दिन चल बैठते है तीसरे के वहाँ
पानी की तरह बहते है दलाली लोग.........!
           और
पानी सड़क पर बहता है,
क्योंकि..परधान .! पानी बहुत है. नाली नही हैं/
ये पानी रोज सड़क पर बहकर नदी तक जाता है
और 50 साल की कोशिश में एक बार भी,
नदी गांव तक नही आ पायी
नदी इसी गुस्से से हर बार
सब खेत डुबा देती है, बर्बाद कर देती है फसल
सरकार से गांव वालों को राहत इस लिए नही मिलती है
की उनके घर नही डूबे है
किसी की जान नही गयी है
कोई धरने पर नही बैठा है
यहाँ सब
थोड़ा स्वाभिमानी है
थोड़ा पागल
थोड़ा हटे है
थोड़ा बुद्धू है, गांव के लोग
हक को भी भीख समझते है
और राजनीति को नीति राज

 


अब जमाना वो नही है कि रात को भूखे सोये,
दम लगी फसल चली गयी
पर मेहनत से (पैदा किया)पाला लड़का
लखनऊ भेज रखा है।
क्योकि परधान को भी तो जिंदा रखना है
उसके मनरेगा के पैसों से,
प्रधान न मरे ...
वो दूसरे पैसे कमा लेगा
कमा लेगा भीख के बदले स्वाभिमान
दूसरा बेटा कविता लिखता है
सबको बताएगा गांव के हाल और हालात
वो सब लिखेगा, जो सच है,या जो सच के पीछे है।
बताएगा सत्य से गांव की कमजोरी
आत्मसम्मान से उठती मजबूरी
खुशी बताएगा,दर्द की बात बताएगा
और हर हल्कू की सरद रात बताएगा
दुःखती हुई गरीबी की जात बताएगा

 

 ...... पार्ट-2nd पढ़े