जलते जलते जल जाएगी.32


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जलते जलते जल_जाएगी
याद तेरी फिर भी_आएगी।

चलते चलते रह_जाऊँगा।
याद तुझे फिर भी_आऊंगा।

देश मे होली का_मौसम
सरहद पर गोली का_मौसम

पूण्य समय है अर्थ वीर_का
देश की रक्षा करे नीड़_सा

असहनीय पीड़ा से बढ़_कर
डटे हुए सिमा पर लड़कर

अधम धधक पौरुष से अड़_कर
सरहद पर होली हो जाएगी।

जलते जलते जल.............

गली गोपचे रंग छा_रहा
चुनाव भी नजदीक आ_रहा

आने वाले सब आये_है,
सब की इतने कब आए_है।

गांव में मैं जब भी आया_ हूँ ।
साये के संग मिल पाया_ हूं।

जाति कुजाति एक संग_ है
मिल मिल कर मिल गए रंग_ है

लिए हुए रंग कोई प्यार _का
जीत का कोई ले रहा मजा हार_का

ऋतु बसन्त की हवा_दीवानी,
हो भांग मिली इतनी_मस्तानी।

ये संग मुझको भी ले_जाएगी।
जलते जलते जल...........

मैं इठलाता बलखता_सा
चल दिया तनिक किन्तु रुका_सा

हर्षित मन में सोच रहा_था।
सोच रहा वह पूर्व व्यथा_थी

फिर उमंग की लहर दौड़_गयी,
ज्यों नदी पुराना खेत छोड़_गयी।

मैंने डाला रंग में_अमीर,
बालो में रगड़ा थोड़ा_समीर।

मैं दौड़ा जहां बैठी_भौजी
ज्यादा प्यारी थोड़ी मन_मौजी।

रंग उड़ाया मला_गुलाल
मन मे न रह गया_मलाल

स्मृति थी स्म्रति रह_जायेगी।
जलते जलते जल............

घर मे मैं सबसे_छोटा हूँ
छोटा की इतना_छोटा हूँ

गलती में मैं ही_होता हूँ,
गुस्से में ज्यादा_हँसता हूँ।

फिर भी जो मुझे _मिला है,
उसका मुझको सिर्फ_गिला है।

जो मिला मुझे कोई मोल_ नही
अब मेरे जीवन मे और_नही

हो गया हठी खुद ही_खुदपर
नही विजय अपने ही_मनपर

जो जोड़ा था उसका तोड़_नही
अब में...................................*************





वो अलग नही सबसे बेहतर है,33

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वो अलग नही सबसे बेहतर है।
नई उमंगो से भी तर है।

विश्वास बहुत घर के जन को भी
विश्वास बहुत है उसके मन को भी

एक भरोसा ऐसा है
कोई नही मुझपर करता है

फिर भी भरोसा नही चाहता
खुश हूं केवल विश्वास ही पाता

वो मेरे पापा जैसी है
कुछ गलत नही चाहती है

थोड़ी हटी सी थोड़ी सिरफिरी सी
थोड़ी धीर सी थोड़ी गम्भीर सी

मेरे पापा को मुझ पर ही स्नेह है,
उसको मुझ पर बड़ा नेह है।

लोग मुझे बस खर समझते है
वो, पापा बिन फल का सर जानते है

उसकी कुछ बाते सब पर सर है,
वो अलग नही..............

कुछ बातें बड़ी लम्बी छोड़ती है,
लेकिन बहुत आगे का सोचती है।.........
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खुद की कमाई है,,31


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तब्दील कर दी जिंदगियां
तब जाके समझ आयी है।

ये तकलीफ़, सजा जेहालत
मेरी खुद की कमाई है।

कभी फुर्सत में करुगा हिसाब ये जिंदगी।

कितनी डूब गई कस्तियाँ हम में,
अभी तक कितनी किनारे आयी है।

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शायरी 30


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गांव में लोग अदब के नाम पर स्थान छोड़ दिया करते है ,
लोग हॉथ बांध कर इज्जत से दिल खोल दिया करते है।
यहां पर नौकरी, पैसो या उम्र से इज्जत नही मिलती।
बस रिस्तो के नाम पर ही सब लोग प्यार दिया करते है।



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मेरी बातों में मेरा कोई हुनर नही है।
यहाँ दूर तक कोई भी सजर नही है।
अब इसी तरह चलना रहेगा जारी
जिंदगी में मेरी कोई भी अगर नही है।

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नाकाम सा अव्यावसाय सबसे छुपाने का किया करता हूं,
मैं खुद को खुद से बचाने की कोसिस किया करता हूँ।

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जिसका कोई नही मैं उसके सर का ताज हूँ,
बीत गया था कल मैं फिर भी मैं आज हूँ,
अंदाज कोई कैसे लगाए बुनियाद शमन की
जब मैं सब कुछ कह दूं तब भी मैं राज हूँ।


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पहली बार नही हर बार हुआ है
उसे हर तीसरे से प्यार हुआ है
बहुत लोग आए हैं इस आग चपेट में
शमन पहला नही जो बेजार हुआ है
मुझको भी उसी से प्यार हुआ है

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बच्चों के साथ रैगिंग
अपनो के साथ चैटिंग
दूसरे के माल के साथ सैटिंग
शमन का attidude नही है।

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एक बात पर 1 घंटा गाली देने की क्षमता रख लेता हूँ।

अब कोई कुछ भी कहे सब सह लेता हूँ।

बदली कुछ ऐसी फितरत-ए-शमन की

जिस बात पे रोना उस बात पे भी हंस देता हूँ।


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ओ अपने है उन्ही में हमारी जान है।

लड़ाई किस-किस से करें सब परेशान है।।


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दुनियां को चाल-ओ-चलन सिखाना हमे भी आता है,
शिर्फ़ मोहब्बत-ए-तराने गाना हमे भी आता है।
गैर होते नही होते क्योंकि
जर्जर तकदीर-ए-रिस्ते निभाना हमे भी आता है।।


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आज तेरे न होने से सुरुआत न हुई मेरी,

और फोन करने की भी औकात न हुई मेरी।

दिनों में बादशाहत चलती है शमन की

पर ये कमज़र्फ अभी तक रात न हुई मेरी।

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ये हालात पैदा करने वाले हाल पुछते है।
कैसे गुजरा पूरा एक साल पूछते है।
मैं हारा था जिस गलती से पिछली बार
वो फिर से मेरी अगली चाल पूछते है।


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लोगों की जितनी बड़ी पूरी कहानी होती है ना
उतना बड़ा शिर्फ़ मेरा एक पल का किस्सा है।
लेकिन उसके कुछ पल की बातें इतना छू गयी
मेरी सारी जिंदगानी उसके एक पल का शिर्फ़ हिस्सा है।

29

कोई हाँ या न में पूछे तो मैं नही करता हूँ
आज कल शायरी मैं गांव पर नही करता हूँ

28

शमन, मुझे परेशान भी इतना ज्यादा न करो 
लौटना नही है तो लौट आने का वादा न करो

बारिश #barish .26






जैसे ही बारिस
की बूंदें हवा को चीरती है
चीखता है मन!
सनसनाहट सुनाई देने लगती है,
नशों की कानो में!
फिर कुछ ही देर में
ठंढी हवा झोका
मन स्थिर करता है।
टिप-टिपाहट की आवाज के साथ
पानी फिरी हुई
जिग्यासाओ पर
पड़ी मिट्टी को कुरेद कर
गड़े मुर्दे निकलती है ",बारिस"


सुरुआत में
कई बूंदे अपना अस्तित्व खोकर
अपनी पीढ़ी पालने का
हेतु बनती हैं
बूंदे मनुष्यता के कारण
मिलकर बहाव उत्पन्न करती है
बहती है उर्ध्व से निजता की वोर
जिसे भरता है गड्ढा
जिसके साथ कई यादें
पुराने घाव खोदकर निकले
मरे खून से मन को भरती है
भरती है आँखे
और फिर होती है ",बारिस"

याद तुझे फिर भी आऊँगा 25


































जलते जलते जल जाएगी 
याद तेरी फिर भी आएगी।

चलते चलते रह जाऊँगा।
याद तुझे फिर भी आऊंगा।

देश मे होली का मौसम
सरहद पर गोली का मौसम

पूण्य समय है अर्थ वीर का
देश की रक्षा करे नीड़ सा

असहनीय पीड़ा से बढ़ कर
डटे हुए सिमा पर लड़कर


अधम धधक पौरुष से अड़ कर
सरहद पर होली हो जाएगी।

जलते जलते जल.............

गली गोपचे रंग छा रहा
चुनाव भी नजदीक आ रहा

आने वाले सब आये है,
सब की इतने कब आए है।

गांव में मैं जब भी आया हूँ ।

साये के संग मिल पाया हूं।

जाति कुजाति एक संग है
मिल मिल कर मिल गए रंग है

लिए हुए रंग कोई प्यार का
जीत का कोई ले रहा मजा हार का

ऋतु बसन्त की हवा दीवानी,
हो भांग मिली इतनी मस्तानी।

ये संग मुझको भी ले जाएगी।
जलते जलते जल...........

मैं इठलाता बलखता सा
चल दिया तनिक किन्तु रुका सा

हर्षित मन में सोच रहा था।
सोच रहा वह पूर्व व्यथा थी

फिर उमंग की लहर दौड़ गयी,
ज्यों नदी पुराना खेत छोड़ गयी।

मैंने डाला रंग में अमीर,
बालो में रगड़ा थोड़ा समीर।

मैं दौड़ा जहां बैठी भौजी
ज्यादा प्यारी थोड़ी मन मौजी।

रंग उड़ाया मला गुलाल
मन मे न रह गया मलाल

स्मृति थी स्म्रति रह जायेगी।
जलते जलते जल............

घर मे मैं सबसे छोटा हूँ
छोटा की इतना छोटा हूँ

गलती में मैं ही होता हूँ,
गुस्से में ज्यादा हँसता हूँ।

फिर भी जो मुझे मिला है,
उसका मुझको सिर्फ गिला है।

जो मिला मुझे कोई मोल नही
अब मेरे जीवन मे और नही

हो गया हठी खुद ही खुदपर
नही विजय अपने ही मनपर

जो जोड़ा था उसका तोड़ नही
क्या जीत हार में हो पाएगी
जलते जलते..........

गांव के लोग और राजनीति .24

#1-मैं वहां बैठा था तो सुन रहा था
फलाना तुम्हारे बारे में बड़ा बुरा कह रहा था

कह रहा कि ये आदमी चाहे जितने बड़े हैं
इनकी औकात के तो मेरे सूखे पेड़ लगे हैं

मंझिलके की दुलहिनि तो इतना लड़ती हैं
अपने ही ससुर को राम विलास कहती है

अम्मा अलग है चूल्हे पे रोटी बनातीं है
बहू का भोग लगा के पोतो को खिलाती हैं

कोई दवा नही लाता ये अम्मा कहती है
बइचवा दुलहिन अब वैगनार से चलती है

बच्चों को बढ़ाना है ये पति को पढाती है
सीतापुर में ही रहना अब वीवी चाहती है

11 साल मंझिलके घर के मालिक रहे है
सबको पता है मुंशी घोटाला कर रहे है

3 महीने में छोटा, 6 महीने में बड़ा
मंझिलके ही झगड़ा करते है खड़ा

मैं ही पिट जाऊंगा मुंशी जानते है, इसलिए
बिचैलिये के बिना झगड़ा नही करते हैं

रिस्तेदार ही उनका सब कुछ बिगड़ते हैं
फिर उनके घर के मामा सुलह कराते है

दो चार झगड़ो में , मैं भी मौके से रह हूँ
पीटने की नौबत आई गाली खाके बचा हूँ

सो ज्यादा अच्छी भाइयों से बनती नही है
लगता तो सच है ये बात फलानी ने कही है


#2- पहली बार वै परधानी चुनाव लड़े थे
परधानी के चक्कर मे वे इतना पड़े थे

कुछ लोगन कहे मां वै अतना पड़े रहे
सब कहइ बैठि जाऊ वे तबहूँ खड़े रहे

चुनाव के पहिले दद्दा मैदान कर रहे
दिन मां वाटे मांगे राति मां गिन रहे

खउहा कुछ आकड़ा हैं ऐसे बताय रहे
जोड़ि-जाड़ी आधी मिली तबहूँ जीत पाय रहे

पछुआई हमारी सब,पुरबाई द्याखा जाई
दखिनै रिस्तेदार है, उत्तरई कि कहाँ जाई

परधानी तुमारि अबकी, कसम चाहे जहां खावाय लेउ
जान लगाय द्याब चाहे शङ्कर जी उठवाई लेउ

आज का काम एकु लेकिन बनवाई देउ
तनी चलेउ सनझिक लाल परी पियाय देउ

चुनाव भवा अपनि सब इहनक वांट दिहिनि
हमका सक है ई दोसरेक अपनि बेचि दिहिनि

जउनु नय होइ देयक रहै वहे होवाय दिहिनि
खड़े रहे हरावइ खातिर वहेक जिताय दिहिनि

हमारे प्रधान कुछ दिन मनरेगा के ठेकेदार रहे
जहां नाय झुकाइक रहइ वहे घुटना डारि रहे

खंभा पर लाइट कछु अइसन लगवाई रहे
इका उजेला तनिकउ न इनके वैसी जाय रहे

लैट्रीन,कालोनी और गल्ला उठाय रहे
अबकी से मनरेगा की तन्ख्वाहउ पाय रहे

हमका पता यो वाट बेचेक फायदा उठाया रहे
हमारि हारे परधान हमका चुतिया बनाय रहे
                                 -shman

तू ही तू.23

हूर भी तू ,मशहूर तू
पास भी तू, दूर भी तू
दवा भी तू ,दुआ भी तू
जख्म भी तू, नासूर भी तू
कई बरस से मुझ में बैठी
है दूर दूर से दूर भी तू

झूट भी तू सच भी तू
आज भी तू कल भी तू
तेरे सहारे बैठा मैं
रज रज के रज दे तू, या
कटे जिंदगी जिसके सहारे
बात आखिरी दस दे तू


रोना ये जिनको पढ़कर
क्यूं ऐसी बातें लिक्खे तू
बस तुझे पता है क्या है तू
मोहे हर जगह ही दिक्खे तू
-shman