शायरी 8 ..................103

 1.मुझमे वही सही है

जो औरों में नही है

हिन्दू हूँ गर्व है मुझे पर
मुस्लिम से तकलीफ नही है

 



2.ये जो सूरज क्षितिज पर दिख रहा है
समर्पण है या फिर दिन निकल रहा है


जख़्म चाहे जैसा हो भर ही जाता हैं
तेरा दिया जख़्म कुछ ज्यादा ही भर रहा है

 


3.सारे किस्से पूरे और चाहे कहानी अधूरी हो
हम उसके रहे ताउम्र वो सिर्फ हमारी हो

सांस आये जितनी बार दिल तक मेरे
उतनी बार उसका मुझसे मिलना जरूरी हो

 



4.वो है सही या गलत ये सब भी बताये वही
इतना भी भरोसा किसी पे न आये कभी

सूखा हुआ दरख्त हूँ पानी के बिना मैं
तुम दरिया हो तो भी मेरे लिए कुछ भी नही

 




5.एक आसमां 
ये दो जहां
तू है कहाँ-2

तेरी याद में हर घड़ी
रात भीगी दिन वही




6.हम वो है जो भगवान को भूल गए 
तुम्हारे जैसे लोग तो कितने आये और गए





7.बात झूठी ही फेंकनी है तो कुछ कमाल फेको
तुम्हारे अंदर तो कुछ नही कभी मेरे अंदर का भूचाल देखो

देह तो तुम केवल जलवों से ही फ़सा लोगी मालूम है
और अब आत्मा भी फ़से कोई ऐसा जाल फेको



 

8.जो गलती मैने की नही
तो सजा भी मैंने जी नही

लौट के वो आया नही
और सदाये मैंने दी नही





9.हाँ मैं कुछ भी नही हूँ फिर भी तुम्हरा हूँ।
शमन तुम बहुत कुछ हो तो मेरे क्यों नही
-शमन


 

10.हम भंवर से किनारे थे
लेकिन किनारों के सहारे थे 

वो किनारे भी किसी के
सहारों के सहारे थे




11.तुम छोड़ गयी तो उम्र भर तलाश रहेगी
मेरी खासियत तू औरों में ढूढ़ती फ़िरेगी

इन दिनों प्यार और नफरत की हद है
तुम्हे मार देना है और ये हसरत रहेगी।




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