कुछ दिए थे जल रहे...................... 104







 कुछ दिए थे जल रहे 

और कुछ जलने पड़े

 

भीगे थे कुछ प्रेम में जो
चिड़चिड़ा कर जलने लगे

 

देखकर दूसरे की रोशनी को
आग से अपनी ही वो जलने लगे

 

कुछ की तिरछी धीमी लौ
कुछ की लौ धीमीं है खड़ी

 

एक दीपक शांत चिंतित
कितना इसको जलना रवां है

 

जल रहा जो जन्म से है
न रोशनी है ना धुंआ है

 

ये दीपक बिना सोचें
जल रहे हैं बुझ रहे हैं

 

एक उम्र से एक चरागा
जल रहा था जल रहा है

 

भाग्य में एसा लिखा कुछ
मिल रहा है टल रहा है

 

एक उम्र से एक चरागा
जल रहा था जल रहा है

 

कुछ दिए एक दो घड़ी में 
बुझ गए कुछ कुछ ही घड़ी में

 

कुछ जो अभी भी जल रहे थे
बुझ ही जाना अगली घड़ी में

 

और हम यह देखते रह
गए उस पल उस घड़ी में

 

रात बीती और थोड़ी
सन्नाटा सा हो गया

लोग सोये गांव में
लोग खोये गांव में

 

कुछ लोग लोगों में खो गए
बैठे हुए बस गांव में

 

और शमन कर दीपको को
बाद भी वो जल रहा है

 

एक उम्र से एक चरागा
जल रहा था जल रहा है


 

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