उसमें चैत की हवा के जैसी गर्मी बहुत है।
हम भी किसान के बेटे हैं बेशर्मी बहुत है।
लोग बिछड़ कर कैसे मर पाते होंगमेरे जीने के लिए उसकी कमी बहुत है।
यहां कैसे न गिरें लोग सूखे में फिसल करइस धूल में मेरी आँखों की नामी बहुत है\
वहाँ आसमान में लोग कैसे लड़ते होंगेयहाँ तो मर जाने के लिए ज़मीन बहुत है।
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