उसमें चैत की हवा के जैसी गर्मी बहुत है।............52

 उसमें चैत की हवा के जैसी गर्मी बहुत है।

हम भी किसान के बेटे हैं बेशर्मी बहुत है।

 

लोग बिछड़ कर कैसे मर पाते होंग
मेरे जीने के लिए उसकी कमी बहुत है।

 

यहां कैसे न गिरें लोग सूखे में फिसल कर
इस धूल में मेरी आँखों की नामी बहुत है\

 

वहाँ आसमान में लोग कैसे लड़ते होंगे
यहाँ तो मर जाने के लिए ज़मीन बहुत है।

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