धीर वीर रणधीर बने है सुगम प्रीति के लेखे
जब 65 71 99 तक हमने पन्ने देखे
मन संकुचित अंकुश खुदपर और धीर मतवालेपत्थर सहते कुछ न कहते पी रहे जहर के प्याले
लड़े चीन से भी वह डटकर और पाक मारा को घुसकर,और सियासी खेलो हारे, राह गए सलामी दे कर।
इनके भुजबल दीर्घ प्रबल जो ऐसे समबल देखेन्याय नीव सत दल सम्मानी, दुनियाँ में करतल किसके,
धीर वीर........
एक तरफ विग्र ग्लेशियर पेट का पानी जम जाए
एक तरफ है ऐसी गर्मी खून भी पानी बन उड़जाए
फिर भी वह सांसो की गर्मी से बेर्फो को पिघलाएंऔर है वे इतने शीतल की जाड़ा जाड़े से मर जाये
याद पिताजी की और घरकी जब-जब उनको आयेयादों के बादल घिर कर और आँखों से बारिश हो जाये
दृग अंजुली आंशू भी देश को सींच रहे हो जिनकेजन-जन शौर्य उपज बढ़ाती प्रतिदिन ऐसे लहूँ है जिनके................... ADHURI...........!
No comments:
Post a Comment