न तू जिंदगी में न जिंदगी का कोई ठिकाना रहा.........................85

 

 न तू जिंदगी में न जिंदगी का कोई ठिकाना रहा

न खत न खतों का वो अलमारी में छुपाना रहा

 

मेरे पास यादों को दोहराने के सिवा कुछ भी नही
अलमारी में सिगरेट छुपाने के सिवा कुछ भी नही

जी तो रहा हूँ अब भी,पर कभी तेरे साथ जिंदा थे,
यार जिंदगी तेरे साथ जीने के सिवा कुछ भी नही

ऐन बारिश में पिजड़े से रिहा किया गया हूँ मैं
न नीड़ मिला,न पिजड़े सा भी कोई आसियान रहा

न तो जिंदगी में न ......................

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