हवा में आज भी उसकी खुसबू आयी है..............62

 हवा में आज भी उसकी खुसबू आयी है

अब अब तो उसकी खुसबू भी परायी है

कुछ सिसकी है कुछ अनचाही तड़पन है
तंग ह्रदय तन पर जो सीधी सी सिमटन है
हमे अब हम पर भी भरोसा होने लगा है
हम ही नही तड़पे उसको भी गम ए जुदाई है
हवा चली............

कुछ तो उसमें,उसके संग अनबन होगी
हवा यहां है तो वहां कौन अब संग होगी
मेरी याद भी आ आकर सताने लगी होगी
वो रोकर भी खुद को हंसाने लगी होगी
अब गलती देकर उसे बदनाम नही करना
मेरी सारी गलती और सारी यही कमाई है।
हवा चली......

ये वायु सबको शीतल कर जाने वाली है
पर यह मुझको कितना तड़फने वाली है
बात नही पर बात बात में अपना पन है
क्या हो अब वह उसका अपना जीवन है
वीराने खंडहरों सी कई रात जागे हैं हम
तेरी बातों से नींदों पर एक रात सजाई है
हवा चली.…...

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