मैने नाव देखी 36

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वह देखी मैंने एक नाव
पानी सूखा लग गयी ठाव

 

जर्जर जीवन पर मन चंचल
पानी पर बहती थी कल कल

 

मन में उसके उत्साह भरा
ग्रह था उसका नीर गया

 

सोच रही वह बार बार
यह भी जीवन में एक बार

 

सबको जाना बस एक बार
मैं पार कराती बार बार

 

कभी किनारों पर रहती थी,
मुझ पे हिलोरे मरते थे,

 

प्रेमी युगल नित बच्चे आनंदित
मन सुस्थिर ह्रदया चल नित नित

 

घर की कलह से वो भी आ आ कर
जग जीवन के संड़त्रो से थक कर

 

दो गोदों के बीच लहर वह 
और हवा निर्मल जल छूकर वह

 

लगती मां के आंचल जैसी वह

 

...........................*****************adhuri

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