$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$वह देखी मैंने एक नावपानी सूखा लग गयी ठाव
जर्जर जीवन पर मन चंचलपानी पर बहती थी कल कल
मन में उसके उत्साह भराग्रह था उसका नीर गया
सोच रही वह बार बारयह भी जीवन में एक बार
सबको जाना बस एक बारमैं पार कराती बार बार
कभी किनारों पर रहती थी,मुझ पे हिलोरे मरते थे,
प्रेमी युगल नित बच्चे आनंदितमन सुस्थिर ह्रदया चल नित नित
घर की कलह से वो भी आ आ करजग जीवन के संड़त्रो से थक कर
दो गोदों के बीच लहर वह
और हवा निर्मल जल छूकर वह
लगती मां के आंचल जैसी वह
...........................*****************adhuri
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