शाम-ए-लखनऊ..............69

 शाम-ए-लखनऊ

दिल-ए-हसरत
हवा बैरन कभी
गुजरी थी यही
आज भी नसीहत-ए-गंध
बह रही है यही-कही
तुम भी सच मे आओ
मैं भी आऊँ
तुम्हारी सुनू और कुछ भी न कहूँ
फिर से बिताऊँ साथ तुम्हारे
एक शाम-ए-लखनऊ

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