न मालूम मैं क्या हूँ..................129

 




न मालूम मैं क्या हूँ 
न मालूम क्या करना है
कुछ पीछे से कहते हैं
बर्बाद हुआ दिवाना है
सपनो की सय्या पर लेटे
सपनो का ही कफ़न वोढकर
मांग रहे सपनो की भिक्षा
सपने में ही हाथ जोड़कर
छोड़के हमको आधे सपनो में
वो सपनो की रानी कहाँ चली
सपने में एक दिन जब मैं था
सारी हक़ीक़त सामने थी
अब किसको करना है बर्बाद
कहाँ तुम्हे अब जाना है।
न मालूम मैं क्या.........…
साम कहाँ होगी?क्या मतलब?
सूरज ढलने तक चलना है
न मालूम........…..........


No comments:

Post a Comment