वादा....................73

 जाने दे मुझे ओ साहिल

तुझसे वादा था कस्ती किनारे लेने का
भँवर से वादा है उसमें डूब जाने का

 

गर्मी,सर्दी कभी बारिश में बदल गये। 
जीना ही सीखा कि मौसम बदल गये।

 

न बदलने का कभी वादा किया था
आप अपने आप फिर हम से बदल गये

 

बड़ी देर फँसा हूँ भँवर में,
जान अब तो निकल

 

जान बता क्या लेगी जिस्म से निकलने का
भँवर तू ही बता हम तो नही बदले वादे से

 

अच्छ था या बुरा पर अपने इरादे से
बड़े लोग आए मुझको बदलने के लिये

 

क्या मिल भी जाता उनको मेरे बदलने से
जिस्म को सुनसान में छोड़ना

 

दुनियाँ से वादा किया है दोबारा न मिलने का।
भँवर अब समय है मुझे मुझसे निकालने का ।

No comments:

Post a Comment