उसकी हँसी से हँसना,उसके रोने पर रोना आ जाता है,
बड़ी बात को बड़े अदब हँस हँस कहना आ जाता है।
उसका मेरा कोई रिश्ता नहीं न कभी भी होना है,
फिरभी रिश्तों को रिश्तों से रिश्तों तक पहुंचना आ जाता है।
मैं अपने तन मन जीवन से कुछ नही चाहता था हूँ।
निर्रथक जीवन को उसके खातिर कुछ करना आ जाता है।
मैने लिखकर पन्ने फाडे थे, कई रात की मेहनत के जो
अब हर कविता को चुन कर अच्छे से रखना आ जाता है।
मैं खुद से खुद पर लड़ कर अड़ा रहा हूं बरसो से
मुझको उसकी झूठी बातो के संग भी बहना आ जाता है।
वो भोली मुझ बुरे शमन संग भी बहुत हर्षिता है।
डरा नही हूँ बरसो से,फिर अब खुद पर डरना आ जाता है।
- shman
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