हर सफो सिकस्ती खाई है।
जब याद तुम्हारी आई है।
सब कुछ हारे पहले से ही
बस अब बात जान पर आई है।
हो न मिलनी सी ये मिलनी जब
तेरे साथ से बेहतर जुदाई है।
चल तकिया भिगोते है अब
हाँ रात बहुत हो आयी है।
है हँसने में मेरा रोना और
हर चीख चीखकर चिल्लाई है।
खुद भी बैठा और गला बैठ गया
पर न आवाज किसी को आई है।
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